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संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ॥
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।
इति विश्वसारोद्धारतन्त्रे आपदुद्धारकल्पे भैरवभैरवीसंवादे वटुकभैरवकवचं समाप्तम् ॥
ದೇವೇಶಿ ದೇಹರಕ್ಷಾರ್ಥಂ ಕಾರಣಂ ಕಥ್ಯತಾಂ ಧ್ರುವಮ್
पठनात् कालिका देवि पठेत् कवचमुत्तमम् । श्रृणुयाद्वा प्रयत्नेन सदानन्दमयो भवेत् ।।
न देयं पर शिष्येभ्यः कृपणेभ्यश्च शंकर।।
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यो ददाति निषिद्धेभ्यः स वै भ्रष्टो भवेद्ध्रुवम्
अनेन कवचेनैव रक्षां कृत्वा विचक्षणः।।
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